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पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद ने हिंदी साहित्य सम्मेलन में पुस्तक का किया लोकार्पण..

Former Governor Ganga Prasad released the book in Hindi Sahi

Patna :-जो व्यक्ति अपने जीवन से समाज में आदर्श की स्थापना करते हैं, उनकी जीवनी आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्ग-दर्शिका और प्रेरणा-दायिनी हो जाती है। जीवन में सफल व्यक्ति समाज को प्रेरणा देते हैं। सुप्रसिद्ध संस्कृति-कर्मी, कलाकार और कवि श्याम बिहारी प्रभाकर, जो ९२ वर्ष की आयु में भी स्वस्थ और सक्रिय हैं, ऐसे ही प्रेरणास्पद पुरुषों में गिने जाते हैं। इनके जीवन पर आधारित पुस्तक का प्रकाशन कर बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने प्रशंसनीय कार्य किया है।

यह बातें मंगलवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में  प्रभाकर के जीवन पर केंद्रित पुस्तक 'जीवन पथ पर प्रभाकर' का लोकार्पण करते हुए, सिक्किम के पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद ने कही। उन्होंने प्रभाकर के लम्बे जीवन की कामना करते हुए, पुस्तक के लेखक जय प्रकाश पुजारी और संपादक बाँके बिहारी साव को भी बधाई दी तथा कहा कि इस तरह के कार्य ही कवियों और लेखकों को दीर्घ-जीवी बनाते हैं।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि प्रभाकर जी के सारस्वत सेवाओं और जीवन के प्रति इनके सकारात्मक दृष्टि-कोण को अत्यंत निकटता से देखने का सौभाग्य मिला है। इनका कर्मठता और विनम्रता पूर्ण सादा जीवन भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक सुंदर उदाहरण है। छल-कपट और प्रपंचों से सदा दूर रहे प्रभाकर जी एक प्रतिभा-संपन्न, भाव-संपदा से परिपूर्ण और सबके प्रति मंगल भाव रखने वाले सच्चे और अच्छे इंसान हैं। अवश्य ही इनका सादगी-पूर्ण और समाज-मंगलकारी जीवन, सुंदर, सार्थक, मूल्यवान और गुणवत्तापूर्ण जीवन का आदर्श और प्रेरणा-स्पद है। इन पर प्रकाशित यह पुस्तक अवश्य ही पाठकों को प्रेरणा और ऊर्जा प्रदान करेगी। कोई व्यक्ति किस प्रकार स्वयं को स्वस्थ, सक्रिय, दीर्घायु, सदा-प्रसन्न और लोक-कल्याणकारी बना सकता है, यह प्रभाकर जी के जीवन से सीखा जा सकता है।


वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि श्याम बिहारी प्रभाकर एक ऐसे व्यक्ति का नाम है, जिन्होंने कला, संस्कृति और साहित्य में अद्भुत योगदान दिया है। प्रभाकर जी युवाओं के लिए ही नहीं, प्रौढ़ों और वृद्धों के लिए भी प्रेरणादायक हैं। एक ऐसे कर्मयोगी जिनसे सभी प्रेरणा प्राप्त करते हैं। इनकी कविताएँ भी यथा-स्थितिवाद की हिमायती नहीं, अपितु परिवर्तन की आकांक्षी हैं।


श्री रामकृष्ण द्वारिका महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो जगन्नाथ प्रसाद, सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष जियालाल आर्य, डा शशिभूषण सिंह, बच्चा ठाकुर, डा किशोर सिंहा, डा मेहता नगेंद्र सिंह, सत्यजीत राय, कमल वास राय, कैलाश पति पाण्डेय, पुस्तक के लेखक जय प्रकाश पुजारी और संपादक बाँके बिहारी साव ने भी अपने विचार व्यक्त किए।


इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि डा रत्नेश्वर सिंह, मधुरेश नारायण, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, कुमार अनुपम, डा पुष्पा जमुआर, सुनील कुमार, चित्तरंजन लाल भारती, सिद्धेश्वर, शुभचंद्र सिंहा, ईं अशोक कुमार, सुनीता रंजन, डा अर्चना त्रिपाठी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, पृथ्वीराज पासवान आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। फागुनी-गीतों का श्रोताओं ने खूब आनंद उठाया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानंद पाण्डेय ने किया।


समारोह में कवि सदानन्द प्रसाद, विभा रानी श्रीवास्तव, ईं आनन्द किशोर मिश्र, डा अविनाश चंद्र सिंह, मंजु गुप्ता, चक्रधर प्रसाद, संजीव कुमार, आदि प्रबुद्ध व्यक्तियों की उपस्थित रही ।

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