Join Us On WhatsApp
BISTRO57

IPS अधिकारियों को हटाने के बहाने CM हेमंत सोरेन ने चुनाव आयोग और BJP पर साधा निशाना..

On the pretext of removing IPS officers, CM Hemant Soren tar

Desk - झारखंड में चुनाव की प्रक्रिया चल रही है इस बीच चुनाव आयोग ने राज्य के कई अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की है और उन्हें चुनाव कार्य से बाहर कर दिया है. चुनाव आयोग की इस कार्रवाई का सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा विरोध कर रही है और इस बहाने चुनाव आयोग पर भाजपा के इशारे पर दलित और आदिवासी अधिकारियों को परेशान करने का आरोप लगा रही है.

 इस संबंध में सोशल मीडिया X पर Tribal Army नाम से बने अकाउंट से एक पोस्ट शेयर किया गया है जिसमें  चुनाव आयोग द्वारा दलित और आदिवासी अधिकारियों को टारगेट करने की बात कही गई है. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस पोस्ट को री पोस्ट कर इसे चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की है. Tribal Army  ने अपने पोस्ट में लिखा है कि-


झारखंड में चुनाव की घोषणा के बाद राज्य के दलित और आदिवासी अधिकारियों के खिलाफ जिस तरह की कार्रवाइयां हो रही हैं, वह न केवल चिंताजनक है, बल्कि दलित-आदिवासी समाज के खिलाफ एक सोची-समझी साजिश प्रतीत होती है। हाल ही में रांची के दलित IAS अधिकारी मंजूनाथ बैजन्ती और देवघर के दलित IPS अधिकारी अजीत पीटर डुंगडुंग को जिन परिस्थितियों में हटाया गया है, वह इस बात का संकेत देता है कि भाजपा सरकार, विशेष रूप से झारखंड में, दलित-आदिवासी समुदाय को सशक्त होते देखना नहीं चाहती। इन ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों को चुनाव के समय हटाया जाना दर्शाता है कि उनकी उपस्थिति से सत्ता में बैठे लोगों को अपने मंसूबों में मुश्किलें आती हैं। ये अधिकारी मतदान प्रक्रिया में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए जाने जाते हैं, जो ईवीएम से लेकर मतगणना तक किसी भी तरह की गड़बड़ी की संभावना को रोकते हैं। भाजपा का यह रवैया स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि चुनाव आयोग के साथ मिलकर ऐसे ईमानदार अफसरों को हटाया जा रहा है, ताकि चुनाव प्रक्रिया में हेरफेर कर सकें और अपनी जीत सुनिश्चित कर सकें।


मोदी जी और उनकी सरकार की चुनावी योजनाएं अक्सर पहले से ही विस्तृत रूप से तैयार होती हैं, और इस बार भी ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। इन योजनाओं का उद्देश्य केवल सत्ता में बने रहना है, और इसके लिए ईवीएम में गड़बड़ी करने तक के आरोप भाजपा पर लगते रहे हैं। झारखंड जैसे राज्य, जहां पर आदिवासी समाज की गहरी जड़ें हैं और जहां की जनता अपने अधिकारों के प्रति जागरूक है, वहाँ इस तरह के भेदभावपूर्ण और तानाशाही रवैये का असर लंबे समय तक दिखाई देगा। दलित-आदिवासी समाज यह सब देख रहा है, और वह अंधा नहीं है। जिस तरह से भाजपा ने अपने हितों की रक्षा के लिए लोकतंत्र के स्तंभों को कमज़ोर करने की कोशिश की है, उसका जवाब अब झारखंड की जनता आने वाले चुनाव में देने के लिए पूरी तरह से तैयार है। यह समय भाजपा के लिए एक चेतावनी है कि झारखंड की जनता अब जागरूक हो चुकी है और वह इस भेदभाव और अन्याय को बर्दाश्त नहीं करेगी। दलित-आदिवासी समाज का यह जागरण निश्चित रूप से एक बड़ा बदलाव लाएगा और इसका प्रभाव झारखंड के चुनावी नतीजों में दिखाई देगा।

bistro 57

Scan and join

darsh news whats app qr
Join Us On WhatsApp