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पढ़िए हरिवंशराय बच्चन की कविता 'लहर सागर का श्रृंगार नहीं'

Read Harivansh Rai Bachchan's poem 'Lahar Sagar Ka Shringar

लहर सागर का नहीं श्रृंगार,

उसकी विकलता है;

अनिल अम्बर का नहीं खिलवार

उसकी विकलता है;

विविध रूपों में हुआ साकार,

रंगो में सुरंजित,

मृत्तिका का यह नहीं संसार,

उसकी विकलता है।


गन्ध कलिका का नहीं उदगार,

उसकी विकलता है;

फूल मधुवन का नहीं गलहार,

उसकी विकलता है;

कोकिला का कौन सा व्यवहार,

ऋतुपति को न भाया?

कूक कोयल की नहीं मनुहार,

उसकी विकलता है।


गान गायक का नहीं व्यापार,

उसकी विकलता है;

राग वीणा की नहीं झंकार,

उसकी विकलता है;

भावनाओं का मधुर आधार

सांसो से विनिर्मित,

गीत कवि-उर का नहीं उपहार,

उसकी विकलता है।

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